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इंसानियत..

इंसानियत..

चिराग जलते हैं मय्यतों पे उनकी,
गैरों की जीवन जिसने रोशन किया है।
खुद की खातिर जो जिया इस जहां में,
अंधेरों ऩे फकत घोंसला वहाँ किया है।
खुदा के बन्दो कुछ ऐसा कर दिखाओ,
इन्सां मे इंसानियत के रंग कुछ मिलाओ।
जुदा कर न पाए कोई लहू को लहू से,
इंसानियत की ऐसी महफ़िल सजाओ।
जियो इस जहां मे, जीने दो गैरों को,
महावीर का पैगाम दुनिया मे फैलाओ।
अमन और मोहब्बत के दीपक जलाकर,
नफरत के अंधेरों को जड़ से मिटाओ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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