स्थिर ना मन हो तो ,
ध्यान क्या लगाओगे ;
तीव्र गति वाहन बैठ ,
कैसे देख पाओगे ।
धुल चढ़े आईना में ,
चेहरा नहीं दिखता ;
दाग भरे चेहरे पर ,
स्वच्छ मन नहीं टिकता ।
कागज सफेद हो तो ,
मन की लिख सकते हो ;
स्याही पुते कागज पर ,
कैसे लिख पाओगे ।
सामने खुली किताब ,
पन्ने उलटते हो तुम ;
पन्ने उलटते ही रहे ,
तो क्या पढ़ पाओगे ।
दुनिया के मेले में ,
चेहरे अनेक पड़े ;
मैले और स्वच्छ का तुम ,
भेद न कर पाओगे ।
मन को तुम स्थिर करो ,
और उसे शांत करो ;
स्थिर हो गया मन तो , तुम सब कुछ पा जाओगे ।
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