फस्ट जनवरी के महातिम (हास्य-व्यंग्य)
मार्कण्डेय शारदेय
पंचे पूछल लालबुझक्कड़ भाई!फस्ट जनवरी ब्रत के महिमा का बा?
लाल बुझक्कड़ जी शुरू हो गइलें- देख ,ईहो व्रतानाम् उत्तमं व्रतम् है।एक दिन एकर विस्तृत विधि-विधान जानने का मन होखा त चारो वेद, छहो शास्त्र, एक सौ आठो उपनिषद्, अठारहो पुराण , रामायण, महाभारत के पन्ना-पन्ना देख गया, बाकिर सब मेहनत गोंइठा में घीव सोखावल होखा।हम सोचा कि एह व्रत के खोज कहीं लौकिक संस्कृत के खोज होखे, त लगा कालिदास, भास ,भवभूति, माघ, हर्ष आ बाणभट्ट वगैरह के ग्रन्थन में आँखि गड़ाने, बाकिर ओहिजो कुछ हाथ ना लगा।सोचा, वर्षकृत्यम्, निर्णय-सिन्धु, धर्मसिन्धु में कहीं होखे त ओहिजो ऊहे बात।सूरदास, तुलसीदास से लेके आधुनिक सन्त-महात्मा लोगन के ग्रन्थन के भी अक्षर-अक्षर पर अंगुरी फेरा, बाकिर बाह रे बाह! कहीं कुछ मिलबे ना किया।हम अचरज खा गया कि अतना बड़ लोकप्रिय व्रत आ समस्त भारतीय मनीषा अलग-अलग कैसे रहे? का दूनों में दुश्मनी था?
हमार मन अतना परिश्रम करके भी निराश ना होखा।हम समझा कि पतंजलि भगवान कहे हैं कि एक शब्द जानि बढ़िया से प्रयोग कर दीहल जाये त प्रयोग करेवाला कामधेनु होख जाता है। एहसे पुरनका आ नयका जे भी रिषि-मुनि प्रयोग किया होगा, ऊ कामधेनु बनके स्वर्ग में चला गया होखेगा।जब रचना भी रचनाकार के पुत्र-पुत्री समान है त का कामधेनु लोग आपन बछरू के मृत्युलोक में थोड़े छोड़के होखेंगे।एह से सही समाधान स्वर्ग जाये के बादे मिलेगा।
हम अपना टेलीपैथी के सभ गाय के पास भेजा, बाकिर ऊ सभ गाय ओरिजनले लउका, कवनो में रिषि-मुनि ना मिले।तब का होखे? एही उधेड़-बुन में पड़के अपना टेलीपैथी के देवगुरु बृहस्पति के पासे भेजा, बाकिर देवराज इन्द्र के दिव्य एक हजार बरिस तक व्याकरण पढ़ावेवाला उनुकरो माथा खोखला लउका।
अब ओहिजा के विख्यात विद्वानन में एगो गणेशजी बचे।टेलीपैथी उनुका पासे दउराया, बाकिर टके-सा मुँह लेके लौटना पड़ा।हम सोचा कि चाहे जैसे हो फस्ट जनवरी के विधि-विधान जानिये के रहना है।प्रयास जारी रहेगा।
अबकी बार ब्रह्मलोक के यात्रा होखा।ब्रह्माबाबा के चारों दिमाग के टो लिया, बाकिर समस्त संसार के रचना करेवाला ब्रह्मा के चारो दिमाग के गरला पर अतने मिला कि कलिकाल में मृत्युलोग के मानव खातिर एह ब्रत के समान ब्रत न भूतो न भविष्यति है।
अब मन खुश होखा कि चल अतना त मिला नु! तनी दादी के दिमाग टोवल जाय।दादी के दिमाग टोवला से कुछ और मिला।दादी बाबा से जीनियस मानले जाती हैं।उनुकर दिमाग बताया कि फस्ट जनवरी के खाद्य-अखाद्य, दर्शनीय-अदर्शनीय, स्पृश्य-अस्पृश्य के कवनो परहेज ना है।ओह दिन कवनो तरह के पाप आ अपराध ना मानल जाता है।जे दिल खोलके एह परब को मनाता है, ऊ यमयातना से दूर आ ब्रह्मलोक के सच्चा अधिकारी होखता है।एकर माहात्म्य ब्रह्म-लेखा नेति- नेति है।
सरस्वती के एगो दिमाग में अतना है, त शेषनागजी के दिमाग में भी कुछ-ना-कुछ त होखबे करेगा।ई सोचके अपना टेलीपैथी के शेषनागजी के पास भेजा।ऊ बारी-बारी हजारो सिर का इंटरभ्यू लिया ।अन्त में पता चला कि फस्ट जनवरी ही एगो ऐसा दिन है,जवना में सुरा सुधा होख जाता है, पाप सांग भजन-कीर्तन होख जाता है आ ब्रेक डांस प्राणायाम भा देव-प्रणाम होख जाता है।एह दिन सामाजिक आ धार्मिक बन्धन पर ध्यान ना देबे के है।जैसे सत्यनारायण के ब्रत में अभावे शालीचूर्णम् भी चलता है, ओइसही एहू में अपना शक्ति के मोताबिक करे का बिधान है।एह से कम से कम खीर भी जरूर बनाके एह पर्व के स्वागत करे के चाहिए।शेषजी के हजारहवाँ दिमाग के ई बात जँचा कि वास्तव में ई लोकपर्व है, एह से शास्त्र पर बिचार कइले नाजायज है- यद्यपि सिद्धं लोकविरुद्धं नाचरणीयं न करणीयम्।
अन्त में हमरा ई बुझाया कि लोकप्रिय पर्व के बारे में शहरी लोकजीवन ही सही बतायेगा, एह से हम शहर-शहर घूमने लगा।अहा! एक से बढ़के एक कृत्य लउका।केहू रास रचावत है त केहू भैरवीचक्र में बइठल है।केहू चाट चट कर रहल है त केहू प्रेयसी भा प्रियजन खातिर पलक बिछवले सजल भोज्य पदार्थ लेके बैठा है।कवनो प्रेयसी प्रियतम के सर्वस्व समर्पण खातिर द्वापरी गोपी बनल है त कवनो प्रियतम प्रेयसी खातिर व्याकुल राम हो निकुंजे बने ढँढ़त।जहाँ एक दिन के बाह्य आ आन्तरिक उल्लास प्रगट कइला से सालोभर सदा दीवाली आ ईद के मजा मिलेगा, ओहिजा लोग ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् वाला नीति के भी अपना के चलबे करेगा।
चूँकि हमरा विस्तृत विधि-विधान जानना था, एहसे हम समस्त शहरी देव-देवियन के दिमाग से कनेक्शन भिड़ाया, बाकिर गतानुगतिक, अर्थात् भेड़िया धँसान ही मिला।हँ, जइसे कविता –कहानी आदि के देवर समीक्षक भा समालेचक हलुवा में हाड़ खोजते फिरते हैं, ओसही कुछ दिमाग बताया कि पछया हवा के चपेट में आके लोग ई करता है।अब पछया हवा के स्वर्गादपि गरीयसी जननी-जन्मभूमि के सफर जरूरी होख गया।एहसे कल्पवास खातिर हम मोटरी-गँठरी बान्हिके तइयार हैं।अब त पौ बारह भा खोदा पहाड़ निकली चुहिया के जानकारी अइलाके बादे दियायेगा।तबतक खातिर दसो नोह जाड़िके क्षमा याचना है।
28दिसम्बर 1997 को हिन्दी दैनिक,आर्यावर्त,पटना में प्रकाशित
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