क्या कभी हमें अपनाते हो
अहंकार का पोषण कर,
तुम अंधी दौड़ लगाते हो।
मानव गरिमा भूल जाते हो,
हमें ही राह बताते हो।।
जीवन ऊर्जा गतिशील न करते,
नहीं सत्य को कभी सिर धरते ।
लोभ स्वार्थ आलस्य प्रमाद से,
हटकर कभी न जीवन जीते।।
निरूदेश्य तुम अबतक दौड़े,
शक्ति नहीं पहचानी।
अनुशासित तुम रहे कभी नहीं,
कार्य किये मनमानी।।
मानवता का हित किया नहीं
खोजे तू सदा बहाना।
अब तेरे सच्चे स्वरूप से,
रहा न कोई अनजाना।।
अपने को बड़ा दिखाते हो,
स्वाभिमान न तनिक जगाते हो।
सच बोलो क्या तुम "विवेक" को,
हृदय से कभी लगाते हो।।
क्या कभी हमें अपनाते हो।
हमें उल्टी राह बताते हो।।
डॉ विवेकानंद मिश्र डॉक्टर विवेकानंद पथ, गोल बगीचा गया बिहार।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com