जो लोग मुल्क छोड़कर, कहीं और बस गए,
उनसे तो भावनाओं के, रिश्ते तक कट गए।
आते हैं दो चार वर्ष में, कभी एक-आध बार,
मिलने की आस लिए, बाबा निकल गए।
बतलाया गया उनको कि माँ बीमार है,
तुम्हारे ही दीदार की, वह तलबगार है।
बोले! इलाज कराओ, आ नहीं सकते,
पैसे भेज देंगे, जितने की दरकार है।
लगने लगा कि पैसा, अब हो गया भगवान,
भावनाओं का उसके सामने, नहीं कोई मुकाम।
माना कि बहुत कुछ मिलता, पैसे से बाज़ार में,
मगर पैसे के खेल में, बिछड़ जाती है संतान।
अ कीर्तिवर्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com