बीत गया जो बचपन, अपना विशेष था,
युवावस्था का हर सपना, अपना विशेष था।
अधेड़ हुए तो परिवार ही, अपना सब कुछ,
शेष बचे जीवन का सपना, अपना विशेष था।
अवशेष में भी शेष समाया है,
कभी रूलाया कभी हँसाया है।
शेष बचे जीवन में थोड़ा हँस लो,
जीवन ने सुन्दर संदेश सुनाया है।
अ कीर्ति वर्द्धन
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