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मैंने शब्दों में

मैंने शब्दों में

भगवान को देखा
शैतान को देखा
आदमी तो बहुत देखे
पर
इंसान कोई कोई देखा।


इन्ही शब्दों में
मैंने प्यार को देखा
कदम कदम पर अंहकार भी देखा
धर्मात्मा तो बहुत देखे
पर
मानवता की खातिर
मददगार कोई कोई देखा।


इन्ही शब्दों में
मैंने चाह देखी
भगवान पाने की
बुलंदियों पर जाने की
गिरते हुए भी मैंने बहुत देखे
पर गिरते को उठाने वाला
कोई कोई देखा।


इन्ही शब्दों में
भ्रष्टाचार को महिमा मंडित करते देखा
नारी की नग्नता को प्रदर्शित करते देखा
पर निर्लजता पर चोट करते
कोई कोई देखा।


इन्ही शब्दों में
कामना करता हूँ ईश्वर से
मुझे शक्ति दे
लेखनी मेरी चलती रहे
पर पीडा में लिखती रहे
पाप का भागी में बनूँ
यश का भागी ईश्वर रहे।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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