जबसे चूज़ी होने का चलन, परिवारों में बढ़ा है,
रिश्ता बनने से पहले ही, भावी रिश्ता ढहा है।
बन भी गया कोई रिश्ता, दबाव में या प्यार में,
नये दौर में कब कहाँ, परवान तक रिश्ता चढ़ा है?
सुनती नहीं हैं बेटियाँ, न बेटे ही कुछ सुन रहे,
अपनी पसन्द से आगे बढ़ते, जीवन साथी चुन रहे।
संस्कार संस्कृति से जुदा, आकर्षण धन का अधिक,
रूप और रंग देखकर भी, ख़्वाब सुनहरे बुन रहे।
अलगाव की प्रवृत्ति बढ़ी, संयम ज़रा बचा नहीं,
अपनी स्वतंत्रता प्रमुख, बाधक कोई जँचा नहीं।
संवाद हीनता बढ़ने लगी, धन कमाने की होड़ में,
एक छत के नीचे रहते, जब तक नया फँसा नहीं।
विज्ञापन शादी के आते, लड़कियों चूज़ी बनो,
वस्त्र बदलो या पति को, लड़कियों चूज़ी बनो।
बिन विवाह संग रहो, आधुनिकता के नाम पर,
या मातृत्व को त्याग दो, लड़कियों चूज़ी बनो।
अ कीर्ति वर्द्धन
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