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मेरी आवाज़

मेरी आवाज़

आवाज़
जो मुल्क की बेहतरी के लिए है,
इसे कोई कोई दबा नहीं सकता।
यह तो सच है कि
आज खड़ी कर दी हैं
ऊँची-ऊँची दीवारें
मेरे चारों और
इस मुल्क के रहनुमाओं ने,
मगर यह भी सच है
जो आवाज़ उठायी थी
मैंने सदियों पहले
वह आवाज़ आज भी
बेजुबान नहीं है।


तुम ही तो हो
जो बने हो
मेरी आवाज़
और रखे हो उसे जिन्दा
किसी शोले के मानिंद।
विवश करते हो
इन बेगैरत रहनुमाओं को,
ऊँची दीवारों के पार
झांकने की खातिर।
तुम्हारा तना सीना
इन्हे नागवार गुजरता है
तुम्हारा सुलगना, दहकना
शोलों के मानिंद
इनकी आत्मा को
तार-तार करता है।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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