उस घरती को कहते औरंगाबाद
अरविन्द अकेला
जिसकी मिट्टी रहती है सदा उर्वर,
जो है खुशियों से रौशन-आबाद,
लेते जन्म जहाँ वीर- रणबाँकुरे,
उस घरती को कहते औरंगाबाद।
जिसकी मिट्टी रहती...।
रहती यहाँ चहुँओर खुशहाली,
दिखती जहाँ तन-मन में हरियाली,
वीर शहीदों से भरी यह घरती,
जिसका पुराना नाम है नौरंगाबाद।
जिसकी मिट्टी रहती... ।
अनुग्रह,काम,शंकरदयाल की घरती,
अपनी-अपनी कुछ गाथा कहती,
यहीं है देव,उमगा का सूर्य मंदिर,
जहाँ लाखों लोग करते हैं फरियाद।
जिसकी मिट्टी रहती...।
यहीं राजा नारायण सिंह क्रांतिवीर हुये,
जिनकी गाथा गा-गाकर लोग करते याद,
धूर्त अंग्रेजों को धूल चटाकर ,
कर दिये उसकी कई टुकड़ी बर्बाद।
जिसकी मिट्टी रहती...।
साहित्यकारों से भरी यह घरती,
कवियों को यहाँ खुब मिलती दाद,
इसी घरा पर जन्में शहीद जगत्पति,
रहे इस घरा का सदा अस्तित्व आजाद ।
जिसकी मिट्टी रहती...।
इसी घरा से दो अखबार निकलते,
पाठकगण जिसे चाव से पढ़ते,
नवविहार टाईम्स व सोनवर्षा वाणी को,
देते हैं लोग मुबारकबाद।
जिसकी मिट्टी रहती...।
मठ,मंदिर,धाम,पहाड़ से भरा यह जिला,
यहीं है पवई रियायत,दाउद का किला,
यहाँ झुनझुनवा पहाड़ की गुंजती झनझन,
जिसे कभी नहीं कर पाया कोई बर्बाद।
जिसकी मिट्टी रहती...।
अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27
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