आतंकवादीयों के मरने पर, जो छाती पीटे रोते हैं,
चन्द खनकते सिक्कों पर, जो नागफनी को बोते हैं।
नफरत का सैलाब, जिनके जहर दिलों में भरा हुआ,
चन्द भेडिये, बकरी की खालों में घुसकर सोते हैं।
नही बोलता कोई कमीना, जब सेना पर हमला हो,
एक आतंकी के मरने पर, घडियाली आँसू रोते हैं।
आया था सैलाब वहाँ, तब सेना ने जान बचायी थी,
अहसानों का बदला जाहिल, पत्थर मार के देते हैं।
जो करे समर्थन गद्दारों का, वह भी तो देशद्रोही है,
गद्दारों के पते ठिकाने, बस कब्रों के अन्दर होते हैं।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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