जीत मे भी, हार मे भी
अविचल चलता रहूँगा,
विश्वास का संबल लिये
मंजिलें गढता रहूँगा।
था नही कुछ भी हमारा
जो यहाँ पर खो दिया हो,
पा सकूँ सारा जहां
इस आस मे बढता रहूँगा।
हैं कुछ बाधायें यहाँ
और पग में कंकर चुभ रहे,
हौसलों की डोर थामे
नित सृजन करता रहूंगा।
कौन जीता कौन हारा
किसका लक्ष्य क्या बना?
क्यों करूँ चिन्ता विगत की,
आगत पर ही ध्यान धरूँगा।
कर्म मै खुद ही करूँ और
फिर प्रभु से हो कामना,
मार्ग मेरा प्रशस्त करें
मैं पर्वतो तक बढ चलूँगा।
हूँ बहुत कृतज्ञ जग मे
दोस्तों के साथ का,
हर मुकाम उनको मिले
आराधना करता रहूंगा।
था नही जिस योग्य
उससे बढकर मुझको मिला,
है कृपा प्रभु तुम्हारी
गुणगान नित करता रहूंगा।
अ कीर्ति वर्द्धन
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