शिशिर तेरा हो रहा क्या अंत?
डॉ रामकृष्ण
कलरवों में मदिरता का
घुला -सा संकल्प ।
टहनियों ने बाँच डाला है
नवीन विकल्प।
कोंपलों के अधर पर
अनुराग रंग वसंत।।
क्यारियों में पीतवसना
झूलता है मन
टिकोरे भी आम्र वन के
छू रहे हैं तन।।
मृदुलता का स्वर निनादित
दिव्य रश्मि अनंत।।
चित्त अविकल प्रांतरों की
टोह में निकले
किधर ?कैसे ? पूछता है
पाँव से पहले ।।
अरुणिमा सहपथिक -सा ले चले शुभ्र दिगंत।।
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