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खड़े नहीं हो सकते जो निज पैरों पर,

खड़े नहीं हो सकते जो निज पैरों पर,

सदा रहे बनकर आश्रित जो ग़ैरों पर।
समर प्रांगण पीछे छिपकर ताल ठोंकते,
निज स्वार्थ सवाल उठाते सीमा पहरों पर।


चूहा बिल्ली जैसे दुश्मन जो सदा रहे,
सत्ता ख़ातिर बिल्ली का आह्वान कर रहे।
बिल्ली को सिरमौर मान लिया चारा खुद,
नीतीश आजकल पप्पू का गुणगान कर रहे।


एक अनूठा खेल देख रहा है देश आजकल,
कुत्ते बिल्ली सियार लोमड़ी सभी आजकल।
एक घाट पर हुये इकट्ठा साँप नेवले मिलकर,
शेर घेरने की योजना बना रहे सब आजकल।

अ कीर्ति वर्द्धन
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