कहीं वसंत पुकार रहा है ।।
डॉ रामकृष्ण
कहीं वसंत पुकार रहा है ।।
कोकिल रव में अमराई से
मिस्री घोलें अगुआई से
बदले-बदले सुर में मद में
कौन अदृश्य निहार रहा है ।।
बदली भाव भंगिमाओं में
आमुख प्रीति चंद्रिकाओ में
संशोधित चित की चंचलता
ओढ़े तनिक विचार रहा है।।
अलस बीसियों में आकुल सी
विजया परस रही व्याकुल-सी
पछुआ के तन का अतनु - ज्वर
कोई छंद सँवार रहा है।।
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