प्रेम और सद्भावना का द्योतक होली
सत्येंद्र कुमार पाठक
वेदों स्मृतियों और संहिताओं में होली का उल्लेख है । भक्ति, प्रेम , सच्चाई के प्रति आस्था और मनोरंजन का पर्व होली विश्व में मनाया जाता है । होली में यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू मेक्सिको में रंग खेलते विद्यार्थी है । नेपाल में होली के अवसर पर काठमांडू में एक सप्ताह के लिए दरबार और नारायणहिटी दरबार में बाँस का स्तम्भ गाड़ कर आधिकारिक रूप से होली के आगमन की सूचना दी जाती है। पाकिस्तान, बंगलादेश, श्री लंका और मरिशस , कैरिबियाई देशों में फगुआ धूमधामसे होली का त्यौहार मनाया जाता है। १९वीं सदी के आखिरी और २०वीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय मजदूरी करने के लिए कैरिबियाई देश गए थे। इस दरम्यान गुआना और सुरिनाम तथा ट्रिनीडाड देशों में भारतीय जा बसे। फगुआ गुआना और सूरीनाम , गुआना में होली के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है । लड़कियों और लड़कों को रंगीन पाउडर और पानी के साथ खेलते है। गुआना , कैरिबियाई देशों में हिंदू संगठन और सांस्कृतिक संगठन नृत्य, संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों के ज़रिए फगुआ मनाते हैं। ट्रिनीडाड एंड टोबैगो , विदेशी विश्वविद्यालयों में होली का आयोजन होता रहा है। विलबर फ़ोर्ड के स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी कैंपस और रिचमंड हिल्स में होली मनाया जाता हैं। मुगल बादशाहों में अकबर, हुमायूँ, जहाँगीर, शाहजहाँ और बहादुरशाह ज़फर होली के आगमन से बहुत पहले ही रंगोत्सव की तैयारियाँ प्रारंभ करवा देते थे। अकबर के महल में सोने चाँदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था और राजा अपनी बेगम और हरम की सुंदरियों के साथ होली खेलते थे। शाम को महल में उम्दा ठंडाई, मिठाई और पान इलायची से मेहमानों का स्वागत किया जाता था और मुशायरे, कव्वालियों और नृत्य-गानों की महफ़िलें जमती थीं। जहाँगीर के समय में महफ़िल-ए-होली का भव्य कार्यक्रम आयोजित होता था। शाहजहाँ होली को 'ईद गुलाबी' के रूप में धूमधाम से मनाता था। बहादुरशाह ज़फर होली खेलने के बहुत शौकीन थे और होली को लेकर सरस काव्य रचनाएँ हैं। मुगल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पिछवाड़े यमुना नदी के किनारे आम के बाग में होली के मेले लगते थे। मुगल शैली के एक चित्र में औरंगजेब के सेनापति शायस्ता खाँ को होली खेलते हुए दिखाया गया है। बरसाने' की लठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। नंद गाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और जम कर बरसती लाठियों के साए में होली खेली जाती है ।मथुरा से 54 किलोमीटर दूर कोसी शेरगढ़ मार्ग पर फालैन में एक पंडा मात्र एक अंगोछा शरीर पर धारण करके २०-२५ फुट घेरे वाली विशाल होली की धधकती आग में से निकल कर अथवा उसे फलांग कर दर्शकों में रोमांच पैदा करते हुए प्रह्लाद की याद करता है। मालवा में होली के दिन लोग एक दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। उनका विश्वास है कि इससे होलिका नामक राक्षसी का अंत हो जाता है। राजस्थान में होली के अवसर पर तमाशे की परंपरा है। मध्य प्रदेश के भील होली को भगौरिया कहते हैं। भील युवकों के लिए होली अपने लिए प्रेमिका को चुनकर भगा ले जाने का त्योहार है। होली से पूर्व हाट के अवसर पर हाथों में गुलाल लिए भील युवक 'मांदल' की थाप पर सामूहिक नृत्य करते हैं। बिहार में
होली खेलते समय सामान्य रूप से पुराने कपड़े पहने जाते हैं। होली खेलते समय लड़कों के झुंड में एक दूसरे का कुर्ता फाड़ देने की परंपरा है। होली का समापन रंग पंचमी के दिन मालवा और गोवा की शिमगो में वसंतोत्सव पूरा हो जाता है। तेरह अप्रैल को ही थाईलैंड में नव वर्ष 'सौंगक्रान' प्रारंभ में वृद्धजनों के हाथों इत्र मिश्रित जल डलवाकर आशीर्वाद लिया जाता है। लाओस में पर्व नववर्ष की खुशी के रूप में मनाया जाता है। म्यांमर में जल पर्व जाना जाता है। जर्मनी में ईस्टर के दिन घास का पुतला बनाकर जलाया जाता है। लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं। हंगरी का ईस्टर होली है। अफ्रीका में 'ओमेना वोंगा' मनाया जाता है। ओमेना वोंगा अन्यायी राजा को लोगों ने ज़िंदा जला डाला था। वोमेना वोंगा का पुतला जलाकर नाच गाने से अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। अफ्रीका में सोलह मार्च को सूर्य का जन्म दिन मनाया जाता है। पोलैंड में 'आर्सिना' पर लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं। यह रंग फूलों से निर्मित होने के कारण काफ़ी सुगंधित होता है। अमरीका में 'मेडफो' पर्व मनाने के लिए लोग नदी के किनारे एकत्र होकर गोबर तथा कीचड़ से बने गोलों से एक दूसरे पर आक्रमण करते हैं। ३१ अक्टूबर को अमरीका में सूर्य पूजा होबो की होली मनाया जाता है। चेक और स्लोवाक क्षेत्र में बोलिया कोनेन्से त्योहार पर युवा लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे पर पानी एवं इत्र डालते हैं। हालैंड का कार्निवल होली सी मस्ती का पर्व है। बेल्जियम की होली भारत सरीखी होती है और लोग इसे मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं। यहाँ पुराने जूतों की होली जलाई जाती है। इटली में रेडिका त्योहार फरवरी के महीने में एक सप्ताह तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है। लकड़ियों के ढेर चौराहों पर जलाए जाते हैं। लोग अग्नि की परिक्रमा करके आतिशबाजी करते हैं। एक दूसरे को गुलाल भी लगाते हैं। रोम में इसे सेंटरनेविया कहते हैं तो यूनान में मेपोल। ग्रीस का लव ऐपल होली भी प्रसिद्ध है। स्पेन में भी लाखों टन टमाटर एक दूसरे को मार कर होली खेली जाती है। जापान में १६ अगस्त रात्रि को टेमोंजी ओकुरिबी नामक पर्व पर तेज़ आग जला कर यह त्योहार मनाया जाता है। चीन में होली की शैली का त्योहार च्वेजे पंद्रह दिन तक मनाया जाता है। लोग आग से खेलते हैं और अच्छे परिधानों में सज धज कर परस्पर गले मिलते हैं। साईबेरिया में घास फूस और लकड़ी से होलिका दहन है। नार्वे और स्वीडन में सेंट जान का पवित्र दिन होली है। शाम को किसी पहाड़ी पर होलिका दहन की भाँति लकड़ी जला कर के चारों ओर नाचते गाते परिक्रमा करते हैं। इंग्लैंड में मार्च के अंतिम दिनों में मित्रों और संबंधियों को रंग भेंट करते हैं । वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार होली है। विक्रम संवत के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण होली को वसंतोत्सव, कामोत्सव एवं रतिउत्सव -महोत्सव कहा गया है। आर्यों में जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र , नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण में होली पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष का अभिलेख तथा संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव कवियों के प्रिय विषय रहे हैं। मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। शाहजहाँ काल में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था । मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे । विजयनगर की राजधानी हंपी के १६वी शताब्दी की अहमदनगर की वसंत रागिनी है। पुरणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप अपनी पूजा करने को कहता था ।उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का उपासक भक्त था। हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को बुलाकर राम का नाम न जपने को कहा तो प्रहलाद ने स्पष्ट रूप से कहा, पिताजी! परमात्मा ही समर्थ है। प्रत्येक कष्ट से परमात्मा ही बचा सकता है। मानव समर्थ नहीं है। यदि कोई भक्त साधना करके कुछ शक्ति परमात्मा से प्राप्त कर लेता है तो वह सामान्य व्यक्तियों में तो उत्तम हो जाता है, परंतु परमात्मा से उत्तम नहीं हो सकता। यह बात सुनकर अहंकारी हिरण्यकश्यप क्रोध से लाल पीला हो गया और नौकरों सिपाहियों से बोला कि इसको ले जाओ मेरी आँखों के सामने से और जंगल में सर्पों में डाल आओ। सर्प के डसने से यह मर जाएगा। ऐसा ही किया गया। परंतु प्रहलाद मरा नहीं, क्योंकि सर्पों ने डसा नहीं। होली पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से जुड़ा है। होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने द पूतना नामक राक्षसी का वध होने के कारण खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था। वैदिक काल में होली पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला से होलिकोत्सव पड़ा है । भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का आरंभ माना जाता है। पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक है। प्रथम पुरुष मनु का जन्म होने के कारण मन्वादितिथि हैं। फाल्गुन शुक्लपक्ष पूर्णिमा को होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। माघ शुक्लपक्ष पंचमी से होली की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। होलिका दहन में चौराहों पर व जहाँ कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र कर होली जलाई जाती है। होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए गाय के गोबर से बने उपले में छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय उपला की माला होलिका के साथ जलाकर होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए। लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है । आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भूना जाता है। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। बिहार , झारखंड में बाबा हरिहरनाथ , तेगबहादुर सिंह , बाबा वैद्यनाथ , बाबा दुग्धेश्वर नाथ आदि देवों की होली गाते हुए भगवान की उपासना क्रस्ट है । फाल्गुन शुक्लपक्ष पूर्णिमा को होलिका दहन के बाद चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को होली में रंग गुलाल , जल , मिट्टी जल मिश्रित , होलिका भष्म एक दूसरे पर लगाते है । होली कामदेव और रति का मिलान समारोह मानते है । प्रेम और भाईचारे का प्रतीक होली है । हालोष्टक के समय मुंडन, नामकरण, उपनयन, सगाई, विवाह आदि संस्कार और गृह प्रवेश, नए मकान, वाहन आदि की खरीदारी आदि शुभ कार्य तथा नई नौकरी या नया बिजनेस प्रारंभ नहीं करते है । शास्त्रों के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित होने से होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है ।.इन दिनों गृह प्रवेश मुंडन संस्कार विवाह संबंधी वार्तालाप सगाई विवाह किसी नए कार्य नींव आदि रखने नया व्यवसाय आरंभ , मांगलिक कार्य आदि का आरंभ शुभ नहीं किया जाता है । हाेलिका दहन के समय पूर्व को हवा चलने से प्रजा को सुखी , दक्षिण में हवा चलने से दुर्योग , हवा पश्चिम में चलने से तृण वृद्धि एवं उत्तर में हवा चलने पर धन-धान्य की वृद्धि और सीधी लंबी लपटे आकाश की ओर उठने से जनप्रतिनिधियों को नुकसान पहुंचता है। ज्योतिषीय दृष्टि से समस्त काम्य अनुष्ठानो के लिऐ श्रेष्ठ है । होलिका दहन के आठ दिन पुर्व का समय होलाष्टक है । होलाष्टक में तंत्र व मंत्र की साधना पूर्ण फल प्राप्त होती है। अष्टमी को चन्द्र,नवमी को सूर्य,दशमी को शनि,एकादशी को शुक्र,द्वादशी को गुरू,त्रयोदशी को बुध,चतुदशर्शी को मंगल व पूर्णीमा को राहु उग्र होने से मनुष्य को शारिरीक व मानसिक क्षमता को प्रभावित और निर्णय व कार्य क्षमता को कमजोर करते है। अष्टमी को चंद्रमा नवमी को सूर्य दशमी को शनि एकादशी को शुक्र द्वादशी को गुरु त्रयोदशी को बुध चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। ग्रहों के निर्बल होने से मानव मस्तिष्क की निर्णय क्षमता क्षीण और गलत फैसले लिए जाने के कारण हानि होने की संभावना रहती है। विज्ञान के अनुसार पूर्णिमा के दिन ज्वार भाटा सुनामी आपदा एवं पागल व्यक्ति और उग्र होता है। अष्ट ग्रह दैनिक कार्यकलापों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। 8 दिनों में मन में उल्लास लाने और वातावरण को जीवंत बनाने के लिए लाल या गुलाबी रंग का प्रयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है। लाल परिधान , लाल रंग मन में उत्साह उत्पन्न करता है । भगवान कृष्ण 8 दिनों में गोपियों संग होली खेलते रहे और अंततः होली में रंगे लाल वस्त्रों को अग्नि को समर्पित कर दिया। होली मनोभावों की अभिव्यक्ति का पर्व है । भगवान शिवजी ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर प्रेम के देवता कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था, जिसके बाद संसार में शोक की लहर फैल गई थी । इसके बाद कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमायाचना की गई तब शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया । भगवान हरिभक्त प्रह्लाद को दैत्य राज हिरण्यकश्यप द्वारा फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक अनेक यातनाएं दी गयी और अंत में पूर्णिमा को होलिका जल गई भक्त प्रह्लाद जीवित हो कर प्रेम और हरि भक्ति हुए । होलाष्टक का अंत धुलेंडी के साथ होली होती है । होलाष्टक मे मनुष्य को अधिक से अधिक देव व इष्ट आराधना व मंत्र साधना करनी चाहिऐ।इस समय तंत्र क्रिया करने वाले जातको को विशेष उर्जा प्राप्त होती है।। जातको को राहु,मंगल,शनि या सूर्य की महादशा चल रही है या ये ग्रह शुभ नही है,इनके शत्रु ग्रह 4, 8 , 12 मे अस्त या वक्री होने पर उन्हे काफी कष्ट भोगना पडता है । जातक महामृत्युंजय जाप,नारायण कवच,दुर्गासप्तशति या सुन्दरकाण्ड का पाठ करे या योग्य ब्राह्मण से करवाने से सर्वाधिक चेतन शक्ति जगृत होती है
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