फागुन
फागुन के महिने में ,ये फागुनी बयार है ।
ले रंग गुलाल फाग ,
होली का इंतजार है ।।
घर घर पाक मिठाई ,
दिल उमड़ा प्यार है ।
रंग व गुलाल खेल लें ,
जिया बहुत बेकरार है ।।
सबसे मिल होली खेलें ,
बड़ों से मिलता प्यार है ।
पाक मिठाई घर घर में ,
स्वागत हेतु ही तैयार से ।।
घर घर मिल लें जुल लें ,
जीवन के दिन में चार हैं ।
कब किसे ईश बुला लें ,
अवसर नहीं बारंबार है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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