Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

मर्यादापुरुषोत्तम’ श्रीराम : श्रीरामनवमी पर विशेष

मर्यादापुरुषोत्तम’ श्रीराम : श्रीरामनवमी पर विशेष

श्री रामनवमी, श्री विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम के जन्म के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहा जाता है । इस दिन पुष्य नक्षत्र पर, दोपहर के समय, कर्क लग्न में सूर्यादी पांच ग्रहों में अयोध्या में रामचंद्र जी का जन्म हुआ । यह उत्सव अनेक राममंदिरो में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नौ दिनों तक चलता है । रामायण का पाठ, कथाकीर्तन और राममूर्ति का विविध शृंगार कर यह उत्सव मनाया जाता है। नवमी के दिन दोपहर को रामजन्म का कीर्तन होता है । दोपहर में एक नारियल को टोपी पहनाकर झूले में रख कर झूला झुलाते है। भक्तमंडली उस पर गुलाल और फूल बरसाते हैं । इस तिथि पर सामान्य दिनों की अपेक्षा एक हजार गुना कार्यरत श्रीरामतत्त्व का लाभ प्राप्त होने के लिए ‘श्रीराम जय राम जय जय राम ।’ यह नामजप अधिकाधिक करना चाहिए । धर्म की सर्व मर्यादा का पालन करनेवाले अर्थात् ‘मर्यादापुरुषोत्तम’, आदर्श पुत्र, आदर्श बंधु, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श राजा, आदर्श शत्रु ऐसे सभी आदर्शों से परिपूर्ण कौन हैं ? ऐसे पूछते ही आंखों के सामने नाम आता है, ‘श्रीराम’ ! जी का । आदर्श राज्य को आज भी रामराज्य की उपमा दी जाती है । श्रीरामनवमी के अवसर पर प्रभु श्रीराम जी की विशेषताएं और कार्य सनातन संस्था के इस लेख से जान लेंगे !’
श्रीरामजी की विशेषताएं और कार्य

आदर्श पुत्र : रामजी ने माता पिता की आज्ञा का पालन किया; परंतु अवसर आने पर जेष्ठों को भी उपदेश किया है, उदा. उन्होंने अपने माता-पिता से यह भी कहा कि वनवास के दौरान दुखी न हों। जिस कैकेयी के कारण रामजी को 14 वर्ष वनवास हुआ, उस कैकेयी माता को वनवास से आने पर रामजी ने नमस्कार किया और उन्होंने पहले की भांति ही प्रेम से बात की ।


आदर्श बंधु : आज भी आदर्श बंधु प्रेम को राम-लक्ष्मण की उपमा देते हैं ।


आदर्श पति : श्रीराम एक पत्नीव्रत थे । सीता का त्याग करने के उपरांत श्रीराम विरक्ति से रहे । आगे यज्ञ के लिए पत्नी की आवश्यकता होने पर भी दूसरा विवाह न कर, उन्होंने सीताजी की प्रतिकृति स्वयं के पास बिठाई ।


आदर्श मित्र : राम ने सुग्रीव, विभीषण आदि के संकट काल के समय उनकी सहायता की ।


आदर्श राजा : गुरुसेवा के रूप में राज्य करना : 'यह उल्लेख किया गया है कि भगवान श्री रामचंद्र ने वनवास से लौटने के बाद राज्याभिषेक के बाद अपना सारा राज्य श्री गुरु वसिष्ठ के चरणों में अर्पित कर दिया; क्योंकि श्रीराम का मत था कि 'समुद्र से घिरी इस पृथ्वी पर राज्य का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही प्राप्त होता है'। बाद में श्री वसिष्ठ के कहने पर श्रीराम ने गुरुसेवा के रूप में 11 हजार वर्षों तक राज्य किया। इसलिए राम राज्य बहुत समृद्ध था और उस अवधि के दौरान सत्य युग था।' - प.पू. काणे महाराज


राजधर्म का पालन करने के लिए तत्पर : प्रजा द्वारा जब सीताजी के विषय में संशय व्यक्त किया तो उन्होंने अपने व्यक्तिगत सुख का विचार न कर, राजधर्म के रूप में अपनी धर्मपत्नी का त्याग किया । इस विषय में कालिदास ने ‘कौलिनभीतेन गृहन्निरस्ता न तेन वैदेहसुता मनस्तः ।’ (अर्थ : लोकापवाद के भय से श्रीराम ने सीता को घर से बाहर निकाला, मन से नही ।) ऐसा मार्मिक श्‍लोक लिखा है।


आदर्श शत्रु : जब रावण के भाई विभीषण ने उसकी मृत्यु के बाद दाह संस्कार करने से मना कर दिया, तो राम ने उससे कहा, “मृत्यु के साथ शत्रुता समाप्त होती है। यदि आप रावण का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे, तो मैं करूंगा। वह मेरा भी भाई है।
धर्मपालक : श्रीराम ने धर्म की सभी मर्यादाओं का पालन किया; इसलिए उन्हें ‘मर्यादापुरुषोत्तम’ कहा गया है ।

‘श्रीरामाने प्रजा को भी धर्म सिखाया। उनकी सीख आचरण में लाने से मनुष्य की वृत्ति सत्त्वप्रधान हो गई व इसलिए समष्टि पुण्य निर्माण हुए । अतः प्रकृति का वातावरण मानव जीवन के लिए सुखद हो गया।

एकवचन : श्रीराम एकवचनी हैं । उन्होंने एक बार भी कुछ कहा, तो वो सत्य ही होता था । अनेक से एक की ओर व एक से शून्य की ओर जाना इस प्रकार से अध्यात्म में प्रगति होती है । यहां शून्य अर्थात पूर्णावतार कृष्ण ।


एकबाणी : श्रीराम का एक ही बाण लक्ष्य तक जाता था इसलिए उन्हें दूसरा बाण नहीं चलाना पड़ता था।


अति उदार : सुग्रीव ने राम से पूछा, “जब विभीषण ने आत्मसमर्पण किया तो आपने उसे लंका का राज्य दिया। अब अगर रावण आत्मसमर्पण करता है, तो आप क्या करेंगे?" राम ने कहा, "मैं उसे अयोध्या दूंगा। हम सब भाई वन में रहने जायेंगे।


सदैव स्थितप्रज्ञ रहनेवाले : स्थित प्रज्ञता यह उच्च आध्यात्मिक स्तर का लक्षण है । श्रीराम की स्थितप्रज्ञावस्था आगे के श्‍लोक से ध्यान में आती है ।


प्रसन्नता न गतानभिषेकतः तथा न मम्ले वनवासदुःखतः ।
मुखाम्बुजश्री रघुनंदनस्य या सदास्तु मे मंजुल मंजुलमंगलप्रदा ॥


अर्थ : राज्याभिषेक की वार्ता सुन कर जिसके मुख पर प्रसन्नता नही आई और वनवास का दुःख सामने होते हुए भी जिसके मुख पर उदासी नहीं छाई, ऐसे श्रीराम की मुखकांति हमारा नित्यमंगल करे।


मानवत्व : श्री राम एक मनुष्य की तरह सुख-दुःख व्यक्त करते हैं और इसलिए अन्य देवताओं की तुलना में हम उन्हें अधिक निकट पाते हैं, उदा. सीता जी को खोने के बाद, रामजी को अत्यंत दुख हुआ; लेकिन ऐसे कठिन प्रसंग में भी श्रीराम की दिव्यता पूर्ववत थी l


रामराज्य : त्रेतायुग में एक श्रीराम ही सात्त्विक थे ऐसे नही अपितु प्रजा भी सात्त्विक थी; इसलिए रामराज्य में एक भी शिकायत श्रीराम के दरबार में नहीं आई ।

खरा रामराज्य (भावार्थ) : पंचज्ञानेंद्रिय, पंचकर्मेंद्रिय, मन, चित्त, बुद्धि व अहंकार इन पर हृदय के राम का (आत्माराम का) राज्य होना, यह खरा रामराज्य है । इस रामनवमी पर अपने इन दोषों का नाश करने का प्रण लें और स्वयं में रामराज्य निर्माण करें।

संदर्भ - सनातन संस्था का प्रकाशन ‘श्रीराम’ व ‘विष्णु व विष्णु के रूप'
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ