बनती कविता
---: भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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आहत होती भावना
और दबी कुचली कल्पना
जब पाती है कंठ का आश्रय
होती है मुखरित खिंचती हुई चित
बन जाती है कविता
होकर रमिता
विविध भाव,लय,छंद
तोडकर द्वंद
देती है सबको वो
अलंकार,ताल,मकरंद
अपनाकर सुचिता
डाल भाषा का कलेवर
बिखेरती है नव स्वर
करने को मन भास्कर
अद्भुत अपूर्व ललिता
कराने भावों का रसपान
गहती श्रवण स्थान
मनोरम लता वितान
पवन,गगन,सविता
----------------------------------------वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
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