मैं कवि हूँ .....
भूत- भविष्य, वर्तमान की छवि हूँ,समाज का दर्पण हूँ, मैं कवि हूँ।
देखता जो, मैं लिखता वही हूँ,
वर्तमान का दर्पण, कहलाता कवि हूँ।
खो गया काल के गर्त में जो,
विचारता उस पर भी, कवि हूँ।
देखता भविष्य के गर्भ में भी झांककर,
प्रेरणा उसके लिए भी देता, कवि हूँ
कल्पना के लोक में भी घूमता मैं,
सूर्य में भी शीतलता तलाशता, कवि हूँ।
रणबाँकुरे राणा, शिवा की छवि हूँ,
तलवार के वार की बात करता, कवि हूँ।
जौहर की ज्वालाओं में जलती वीरांगनाएँ,
इतिहास की पड़ताल करता,कवि हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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