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खून उबल रहा है

खून उबल रहा है

--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र अणु
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किसी के शह पर उछल रहा है,
देखकर मेरा खून उबल रहा है।१।
खोजता है वो लडने का जरिया,
कहता हर बात में जल रहा है।२।
जानता है सब टिक न पाऊंगा,
प्रतिशोध की आग में गल रहा है।३।
वो पीठ पर खंजर चलाने वाला,
वहीं गाल पर गुलाल मल रहा है।४।
साफ आस्तीन का सांप निकला,
जो कोई पीछे पीछे चल रहा है।५।
मदद लेकर गद्दारी किया सबसे,
ये बात सबको आज खल रहा है।६।
जरा सावधान रहा करो मिश्र अणु,
हर कदम साजिशतन टहल रहा है।७।
_________वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
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