गौरैया है रोज़ सबेरे
गौरैया है रोज़ सबेरे
मेरे घर में आती
खिड़की में चीं-चीं की दस्तक
देकर वही जगाती
मन्दिर में पूजा की जब भी
मैं करता तैयारी
पास बहुत मेरे आ जाती
लगे पुरानी यारी
पूजा की थाली से अक्षत
चुन-चुनकर ले जाती
छेड़-छाड़ वह हरदम करती
करती हसी ठिठोली
ऐसा लगता है बचपन की
बहना है मुँहबोली
पानी के लोटे से पानी
पी-पी कर इतराती
उसके न आने से मेरा दिल
धक-धक करता है
रहतीं आँखें बाट जोहती
दृगजल भी झरता है
व्याकुल हो करके वह भी तो
मुझको है गुहराती
फुदक-फुदक कर जब आ जाती
घर खुशियों से भरता
फूली नहीं समाती है
जब प्यार चिरौटा करता
जन्नत जैसा वह पल होता
जब आँखें मटकाती
गौरैया है रोज़ सबेरे
मेरे घर में आती
खिड़की में चीं-चीं की दस्तक
देकर वही जगाती
*
~ जयराम जय
पर्णिका बी-11/1,कृष्णविहार,आवास विकास ,कल्यापुर,कानपुर-17(उ०प्र०)
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