जिन्दगी हो चार दिन या शतायु बनती रहे,
मन में प्रसन्नता रहे और जिन्दगी बढती रहे।
गम जीवन में रहें, खुशियाँ भी संग संग चलें,
रात और दिन संग रहते, जिन्दगी चलती रहे।
कहता रहा हूँ अकेला, तन्हाई संग में मेरे,
तन्हा जीवन यादें संग हों, जिन्दगी हंसती रहे।
उपवन की शोभा फूल से, काँटे सुरक्षा में सदा,
फूल और काँटों सी जिन्दगी, खुश्बू बिखरती रहे।
काम आँऊ मैं किसी के, जीवन सार्थक बन सके,
मानवता उर में रहे, जिन्दगी खिलती रहे।
हो अन्धेरा गर कहीं, अज्ञान का प्रचार हो,
ज्ञान दीप बनकर जलूँ, जिन्दगी बढती रहे।
क्या कहा, किसने कहा, द्वेष किसके दिल में था,
बदले की भावना को, जिन्दगी बिसरती रहे।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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