तुम सच बोलो
करुणा और कल्याण भाव
दिल में क्यों नहीं रखते हो।
न्यायधर्म को छोड़ बता,
तू क्यों क्रूर निर्मम बनते हो।।
तुम सच...........
पशुता और असुरता को रख,
क्यों जीवन में दुख सहते हो।
अंतहीन दुख और विषाद का,
क्यों दावानल धधकाते हो।।
तुम सच...........
दिवास्वप्न और व्यर्थ तनाव की,
गहन गुफा में क्यों फंसते हो।
ज्योति आशा की नहीं जला क्यों
सुखद भविष्य से मुंह मोड़ते हो।।
तुम सच..........
अपने सोए पुरुषार्थ जगाकर,
क्यों अपना हित नहीं करते हो।
संग "विवेक" को ले चलने में,
तू सच बोलो कि क्यों डरते हो।।
तुम सच...........
डॉक्टर विवेकानंद मिश्रा
विवेकानंद पथ, गोल बगीचा गया
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