संकल्प
एक दिन बाती ऩे सोचा, मैं खुद को जलाती हूँ,
तेल अपने दीपक से लेती, तम को मिटाती हूँ।
अंधेरों ऩे किसी साजिश से,आँधियों से दोस्ती की,
और उन्होंने बेवज़ह ही, बार-बार मुझको बुझाया।
आज मैंने दिल मे अपने, यह इरादा कर लिया है,
रोशनी को यह जता दूँ, आँधियों की चाल क्या है?
रात का नीरव अँधेरा, उसमे बाती जल रही थी,
तम मिटाने के लिए, खुद से ही वह लड़ रही थी।
आँधी का एक झोंका, और बाती उड़ चली थी।
फूँस पर जाकर गिरी वह, आग वहां पर लग गई।
सोचा था बाती बुझ जाएगी, अंधेरों का राज होगा,
आज तो शोला बनी, अंधेरों को निगल रही थी।
जितना चाहा आँधियों ऩे, मिटाना वजूद आग का,
वह बढी और बढ़ती गई, फिर दावानल बनी।
इस तरह मिट गया जब, वजूद अंधकार का,
आँधियों का भी गुरुर तब, इस धरा से मिट गया।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com