मेरी कविता
मनिषा गुप्ता 'बंटी'हृदय में भावना
सोई थी
साथ में कल्पना
बोई थी
मिलता गया परिवेश
विविध रंग,रुप,भेष
करती रही मैं उन्मेष
खुद में खोई थी
मेरे पास का पहाड़
गिरती धारा खा पछाड
पक्षियों का कलरव
और वनराज का दहाड
लता गोई थी
नदियों का पनघट
झुरमुट का घुंघट
हिरणों का झुंड
खिखियाता बंदर नटखट
जो गिलहरी टोई थी
तरह तरह के फूल फल
देता रहा जंगल
हवा गीत सुनाती रही
गजल नदियों का कलकल
आंसू आंख धोई थी
वो भावना
वो कल्पना
गढ़ती रही सपना
पकड़ समय का हाथ
कहती रही निज गाथ
बनाने को आतुर पाथ
मर्यादा सुध खोई थी
मुखर हुई ध्वनि
गुंजी अंबर अवनी
ये दिवा उग्र स्निगध रजनी
आकाश का चांद
और पर्वत का मांद
देखते देखते आकांक्षा
सीमा गई फांद
ग्रह, नक्षत्र,सविता
बन गई कविता
देखकर रमणीयता
शब्द सौष्ठव भव्यता
निर्मलता,उदारता
छोड़ मलीनता और दीनता
मिटाकर भिन्नता
छोड़ मितव्ययिता
मेरी कविता
मेरी कविता
----------------------------------------स्टेशन रोड, लातेहार (झारखण्ड)
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