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होली की है रुत आयी, आजा परदेसी मन तरसे।

होली की है रुत आयी, आजा परदेसी मन तरसे।

होली की है रुत आयी, आजा परदेसी मन तरसे।
फूली सरसो लदी है अमिया, मेरा मन है सरसे।।
अबके आंगन खिलेंगे प्रियतम, प्रेम प्रसून हमारे।
भीगेगा ये तन मन अंतर्मन, ले प्यार के रंग तुम्हारे।।
ये नयना न माने कहना, फिर फिर ताके हैं द्वारे।
आजा रे परदेसी पिया, न तरसा दिल को हमारे।।
साड़ी आयी चुनर आयी, आया रंग गुलाल रे।
जिससे रंगूँगी मैं बावरी, आया न वो माटी का लाल रे।।
तुम बिन पिया मैं खेलूं होली, कैसे कैसे करूँ शृंगार रे।
अँखियों में पानी; होठों पे नाम तेरा, आया क्यों त्योहार रे।।
देख पलाश की आग में, जल रहा है ये दिल मेरा।
हर पिचकारी अगन बरसाए, मन करता तेरी पुकार रे।।
आजा आजा मेरे बालम, फागुन की यही पुकार रे।
तू घर आंगन आये तो समझूँ, मेरा पूरा हुआ श्रृंगार रे।।-
मनोज मिश्र
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