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मां जानकी

मां जानकी 

आदिशक्ति मां जगज्जननी ,
दशरथ बहू जनक नंदिनी ।
बिहार की तू बिहारी बेटी ,
सभ्य शिष्ट संस्कार रक्षिणी ।।
धरा की बेटी धरा की सुनो ,
धरा पर शीघ्र आना होगा ।
बनाया विज्ञान मानव दुर्बल ,
श्रम मार्ग तुम्हें दिखाना होगा ।।
हुई थी जल की त्रुटि तब भी ,
जन जन जब विलासित थे ।
हुई थी उत्पन्न तब तुम धरा से ,
हुए पिता जब हल पे आश्रित थे।।
हुई वर्षा तब बहुत जोरों की ,
जनकपुर नगरी बागबाग हुआ ।
दुगुनी खुशियां छायीं धरा पर ,
जनकपुर का ऊंचा पाग हुआ ।।
आज पुनः वैसी ही है स्थिति ,
धरा हेतु मां पुनः आ जाओ ।
धर्म कर्म मस्तिष्क तुम दे दो ,
श्रम मार्ग सबको दिखा जाओ ।।
अरुण दिव्यांश
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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