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मौसम के सुर बदल रहे

मौसम के सुर बदल रहे

डॉ रामकृष्ण मिश्र
घाम-घाम खेलती रही धरा-किरण,
त्रास में उदग्र शान्ति हो गयी हिरण,
मेह भी गरज सदल रहे॥
मौसम के सुर बदल रहे॥


दूर कहीं पर्वत पर सुना, घिरे बादल,
पाषाणी छाती पर फट॓,हुआ घायल,
अनबूझे तरु अबल रहे॥
मौसम के सुर बदल रहे॥


रास्ते पहाड़ों के बर्फ हो गये लेकिन,
घाटियाँ नयेपन में बन रहीं बड़ी बेसिन,
दुख के अनुभव सबल रहे॥
मौसम के सुर बदल रहे॥


राहत मैदानों में बाँट तो गये हैं
अपने परचम भी कुछ साट तो गये हैं,
विधि निर्देशन प्रबल रहे॥
मौसम के सुर बदल रहे॥ रामकृष्ण
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