Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

मुखौटों की दुनिया

मुखौटों की दुनिया

मुखौटों की दुनिया मे, रहता है आदमी,
मुखौटों पर मुखौटें, लगाता है आदमी।
बार बार बदलकर, देखता है मुखौटा,
फिर नया मुखौटा, लगाता है आदमी।
मुखौटों के खेल मे इतना, माहिर है आदमी,
गिरगिट को भी रंग, दिखाता है आदमी।
शैतान भी लगाकर, इंसानियत का मुखौटा,
आदमी को छलने को, तैयार है आदमी।
मजहब के ठेकेदार भी, अब लगाते है मुखौटे
देते हैं पैगाम, बस मरता है आदमी।
लगाने लगे मुखौटे, जब देश के नेता,
मुखौटों के जाल मे, फंस गया आदमी।
जाति- धर्म का जब, लगाया मुखौटा,
आदमी का दुश्मन, बन गया है आदमी।
देखकर नेताओं का, मुखौटा अनोखा,
हैरान और परेशान, रह गया है आदमी।
एक रोज लगा लिया, जानवर का मुखौटा,
पशुओं का सारा चारा खा गया है आदमी।
कभी भूल जाता है, जब बदलना मुखौटा,
शै और मात मे, फंस जाता है आदमी।
मुखौटों के खेल मे इतना, उलझ गया आदमी
खुद की ही पहचान, भूल गया है आदमी।
मुखौटे भी शर्माने लगे, यह रंग देखकर,
बेशर्मी की हदें, पार कर गया है आदमी।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ