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मुस्लिम महिला को शर्म नहीं, निज संस्कारों के पालन में

मुस्लिम महिला को शर्म नहीं, निज संस्कारों के पालन में,

नहीं रोकती फ़ैशन की बाधायें, उसको हिजाब लगाने मेँ।
निज परिवार शादी विवाह उत्सव में, फ़ैशन कर नाचे डोले,
घर से बाहर संस्कारों का पालन, तत्पर नक़ाब लगाने में।
पढ़ी लिखी या अनपढ़ हो, अपने धर्म की अनुयायी,
व्यापार नौकरी घर के भीतर, धर्म की नीति अपनाई।
कार्य स्थल या बीच बाज़ार, स्कूलों में हिजाब बवाल,
तलाक़ हलाला कुछ भी हो, बात धर्म की बतलाई।

हिन्दू बेटी क्यों संस्कारों को, फ़ैशन के पीछे छोड़ रही,
माथे पर बिंदी मांग सिन्दूर, क्यों लगाना वह छोड़ रही?
घूम रही विधवा जैसी, नहीं मान सम्मान धर्म का करती,
फ़ैशन में सबसे आगे वह, कपड़ों को क्यों छोड़ रही?
सामूहिक परिवारों को तज, तन्हा रहने का चलन बढ़ा,
देर रात तक जगते रहना, देर से उठने का चलन बढ़ा।
संस्कारों को देने वाली, संस्कार विहीन होती देखी,
घर पर खाना कौन बनाये, बाहर जाने का चलन बढ़ा।

अ कीर्ति वर्द्धन
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