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शाकाहार बनाम महाराणा।

शाकाहार बनाम महाराणा।

मनोज कुमार मिश्र "पद्मनाभ"
शत्रुओं से घिरे महाराणा प्रताप जब अपने स्मिता की रक्षा और मादरे वतन की आन बान और शान को बचाने की खातिर घने जंगलों की ओर रुख करते हैं तब वे रिक्तहस्त होते हैं।संपत्ति और साथी के नाम पर उनका प्रिय भाला ही साथ होता है।वन वन भटकते जब प्यास लगती कभी नदी कभी झरने का जल ही उनकी प्यास बुझाने के काम आता।लेकिन ये कबतक चलता।पेट है तो भूख भी तो लगेगी ही।लेकिन न साधन न संसाधन भूख मिटे तो कैसे?वैसे जब भाला साथ है और निशाना पक्का है तो जंगल में शेर ,बाघ,चीता,हिरण,निलगाय,जंगली सूअर जैसे बड़े जानवरों के अलावे छोटे प्राणी खरगोस के अलावा तोते,कबूतर,तीतर,बटेर ,बगुले जैसे पक्षी के अतिरिक्त नदियों तालाबों में मछलियाँ, केकड़े जैसे जीव भी तो होंगे ही।इनका शिकार कर आग में भूनकर भी तो खाया जा सकता था!क्षुधा की तृप्ति के साथ शरीर को ऊर्जा और स्फूर्ति भी मिलती।आखिर महाराणा ने इन्हें नापसंद कर घास की रोटी खाना क्यों पसंद किया?जबकि मांसाहार से ज्यादा तरद्दुद इस घास की रोटी के लिये उठाना पड़ा होगा।फिर भी इस श्रमसाध्य भोज्य पदार्थ का ही चयन किया।कारण बिल्कुल साफ है।उन्हें स्वयम् के शाकाहारी होने से कहीं ज्यादा समाज को यह संदेश देना था कि शाकाहार ही हमारी सर्वांगीण ऊर्जा का श्रोत है।शुद्ध आहार ही हमें शुद्ध विचार दे सकते हैं।मांसाहारी बनकर हम ऊग्र भले हो सकते हैं सात्विक कदापि नहीं,और जब तक हमारे भीतर सात्विक भाव का आविर्भाव नहीं होगा हम भारत के अस्मिता की रक्षा नहीं कर सकते।हम भारतीये सभ्यता और संस्कृति को बचा नहीं सकते।हमारे ऋषियों की मान्यता रही है आहार के अनुरूप हमारे विचार होते हैं और विचार के अनुरूप ही हमारे व्यवहार होते हैं।इसीलिये जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा तेरा मन।जब सिकंदर विश्वविजय की कामना लिये महान आर्यावर्त की परमपावन भूमि का स्पर्श करता है उसका सामना एक नंग धडंग भारतीय संत दाण्ड्यायन से हो जाता है।उनकी ओजस्वी और निर्भीक वाणी से वह प्रभावित होकर पूछ बैठता है बाबा आप कहाँ रहते हैं?क्या खाते हैं?क्या पीते हैं?आपको मुझसे या मेरे सैनिकों से डर नहीं लगता?मैं आपके प्राण भी ले सकता हूँ!किंतु महान भारतीय संत जो मात्र कौपीन धारी है ,शस्त्रविहीन है ,बड़े ओजस्वी स्वर में कहता है ऐ सैनिक सुन !न मैं किसी के राज्य में जीता हूँ,न किसी का दिया खाता हूँ न पीता हूँ।मैं नीली छतरी वाले के छत के नीचे रहता हूँ ,प्रकृति के द्वारा स्वतः प्रदत्त आहार को ग्रहण करता हूँ और माँ गंगा के अमृत का पान करता हूँ।तू होगा कहीं और का महान यह आर्यावर्त्त की भूमि है यहाँ सिर्फ नीली छतरी वाले का राज्य चलता है।हम सब उसी एक की प्रजा हैं और एकमात्र वही हम सबका राजा है।हम प्रेम भी उसी से करते हैं और भयभीत भी उसी से होते हैं।
सिकंदर जो अपने आपको महान संज्ञाधारी बताया करता था उस परम संत के श्री चरणों में नत मस्तक हो अपना शस्त्र रख देता है और विश्व विजयी की अधूरी कामना लिये लौट जाता है।शाकाहार की इस अद्भुत ताकत के आगे एक बार नहीं अनेक बार हमारे शत्रुओं ने भारत माता के परमपावन चरणों में अपना शीष नवाया है।अपने इन पूर्वजों से प्रेरणा लेकर आज फिर से एक बार शाकाहार की अदम्य ऊर्जा को दिखाने की जरूरत है।अहिंसा को गले लगाने की जरूरत है।
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