पतझड़ में भी तो पत्ते, अपना अहसास कराते हैं,
टूट गये हों भले डाल से, अपना महत्व जताते हैं।कुछ रहते जलने को आतुर, काम आ सकें ईंधन के,
कुछ कर्र कर्र की आवाजों से, हमें सतर्क कर जाते हैं।
सावन में पत्तों का उगना, जीवन की आस जगाता है,
गया पुराना जब डाल से, तब नये की आस जगाता है।
यह तो जीवन चक्र सदा से, कोई नूतन बना पुरातन,
खारा कुछ मुख में आ जाये, मीठे की आस जगाता है।
अ कीर्ति वर्द्धन
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