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मुरली मुरारी

मुरली मुरारी

मोहन मुरली मुरारी ,
शीश मोर मुकुटधारी ।
संग विराजें प्रभु के ,
रानी राधा प्यारी ।।
बड़ा रंगरसिया ,
राधा मन बसिया ।
चित्त लगाए तुम ,
लगावत प्रेम रसिया ।।
लगावत कौन जुगुति प्रभु तुम ,
लगातार सब तुम्हार अरदसिया ।
खाना पीना कोउ के न रुचे ,
तुमही सबके भूखिया पियसिया।।
सर के शरारत शर बन जाता ,
शर वेध सबको घायल बनाता ।
नर नारी सब होत तेरे दीवाने ,
ऐसा कौन रूप तेरो विधाता ।।
मुरली बजावत प्रेम जगावत ,
प्रेम लगावत प्रेम बढ़ावत ।
पर्दानसीन सब नारी ,
घर के बाहर तुम कढावत ।
मुरली धुन गुंजे गली गली में ,
जानें किससे कौन अदावत।।
किंतु एक प्रभु सबको साधे ,
एक डोर में सबको है बांधे ।
कितनी ललिता रुक्मिणी अरु ,
कितनी संग में नाचें राधे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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