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दिनकर की कलम

राष्ट्र कवि श्री राम धारी सिंह दिनकर की पुण्य तिथि पर मेरी एक कविता स्वरचित

दिनकर की कलम 

दिनकर का कलम सिर्फ कलम नहीं
वो दो धारी तलवार हैं
जिससे लिखे शब्द से घायल होते शत्रु
जिनकी गिनती नहीं बल्कि कई कई कतार है
चाहें रश्मिरथी के कर्ण का वीर रस का वर्णन हो
या परशूराम की प्रतीक्षा के द्वारा
कांग्रेसियों का दमन हो
वे स्वभाव से निर्मल और मृदुभाषी थे
जहां राष्ट्र के अहित की बात हो
तो कठोर और अविनाशी थे
१९६२ में जब भारत चीन से युद्ध हारा
तब इस स्पष्टवादी राष्ट्र कवि ने भरी सभा में
नेहरू को कटाक्ष कर डाला
जब कुशासन होने लगा देश में
तब जनता की आवाज़ बन बैठे
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
यह नारा हर नागरिक को दे दिया
सांसद होकर भी कुबुद्धि वालो का साथ नहीं दिया
बिहार के बेगूसराय का वह वीर
देश की आन, बान और शान को मिट्टी में मिलने नहीं दिया। 
ऋचा श्रावणी
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