बदला-बदला सा कुछ नहीं लगा ।
रामकृष्णवही अंधता आवारापन
झूठ बोलने का सत्यापन
जो आजानुबाहु होते थे
बाहुबली बन कर नंगापन
दिखा, नहीं किस -किस को ठगा।।
जिनके हाथों की कठपुतली
राजनीति की लुंडी-सुतली
आँखों पर पट्टी चिपकाए
बता रहे हैं असली-नकली।।
कैसे कोई कह दे हुई दगा।।
अत्याचारों को आरक्षण
भय पोषित दहशत संरक्षण
मुंह पर ताले ऊँघ रहे जब
कौन करे साहस संधारण।।
लगता जीवन ही विष में है पगा।।
नारों की बेवजह चिरौरी
इस्तहार की आदमखोरी
नकली भले मुखौटे डाले
घूम रहे जो चोरा -चोरी।।
लगता उनका कोई नहीं सगा।।*********
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