बदल रहा है समय, और सोच बदल रही है,
मर्यादाएँ बदली, धर्म परिभाषा बदल रही है।
हिन्दू बनते धर्मनिरपेक्ष, मुस्लिम कट्टरपंथी,
हिन्दू सहिष्णु कब तक, सोच बदल रही है।
अत्याचार सहे पर कुछ न बोले, वह हिन्दू है,
बलात्कार पर मौन आँख पर पट्टी, वह हिन्दू है।
विद्रोही तेवर दिखला, प्रतिक्रिया में स्वर उठाया,
अपनों की आँखों में खटका, कट्टरपंथी हिन्दू है।
जग वालों के व्यंग्य बाण, सह सकते हैं,
छूरे बरछे और कृपाण भी, सह सकते हैं।
तुष्टिकरण के पैरोकारों से डर नहीं लगता,
धर्म नाम हिन्दू को बाँटो, नहीं सह सकते हैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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