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अरमां ने मचलना छोड़ दिया

अरमां ने मचलना छोड़ दिया

यूं अपनों ने मुंह मोड़ लिया, रिश्तो नातों को तोड़ दिया।
अरमां ने मचलना छोड़ दिया, रिश्तों ने रुख मोड़ लिया।
अरमां ने मचलना छोड़ दिया


चमन में कलियां सुस्त हुई, मुरझाए फूल पड़े सारे।
दिल के तारों की धड़कने, सुर भूल गए साज सारे।
वीणा की झंकारों ने, सुर तान सुनाना छोड़ दिया।
संगीत हुआ व्याकुल, लफ्जों ने गाना छोड़ दिया।
अरमां ने मचलना छोड़ दिया


प्रेम प्यार की वो बातें, कागज पर दिखाई देती है।
सागर मिलन सरिता दौड़े, गानों में सुनाई देती है।
कर्णप्रिय स्वर कंठो से, कानो ने सुनना छोड़ दिया।
ईर्ष्या द्वेष की आंधी में, तूफानों ने रूख मोड़ लिया।
अरमां ने मचलना छोड़ दिया


काली जुल्फे घटाओ सी, जब मेघ उमड़े आते थे।
बहती सद्भावों की धारा, रस प्रेम सुधा बरसाते थे।
रिश्तो में कड़वाहट घुली, साथ चलना छोड़ दिया।
तूफानों से टक्कर लेते, हर हाल ढलना छोड़ दिया।
अरमां ने मचलना छोड़ दिया


रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थानरचना स्वरचित व मौलिक है
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