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खुली किताब


खुली किताब

 ---: भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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अरे ओ जनाब
यदि पाल रखे हो तुम
अपनी आंखों में कुछ ख्वाब
तो रखा कर अपने पास
कुछ खुली किताब
सपने को गढ़ना हो
या फिर आगे बढ़ना है
जीवन के पथ पर
इति से अथ पर
बनने को नबाब
गर सीख गए पढ़ना
तो फिर क्या कहना
एक ही काम बचेगा
निरंतर आगे बढ़ना
पार कर गिरी,प्रांतर,ढाब
लोग मानेगें तुमसे हार
बार बार हर बार
स्वीकार करेंगें तुमको
तेरी पुजाकर पांव दाब
बदल दोगे इतिहास
बनाओगे कीर्ति खास
अपने आसपास
कर अज्ञान का समूल नाश
उमड़ पडेगा ज्ञान का सैलाब
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वलिदाद अरवल (बिहार)८०४४०२.
विश्व पुस्तक दिवस को समर्पित
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