सुरक्षित हैं बेटियां, वर्तमान भारत सरकार में,
खामियाँ जितनी भी हैं, बस हमारे किरदार में।छोड़ा है जबसे हमने, संस्कारों के संसार को,
उच्श्रृंखलता बढ़ रही, हम सबके व्यवहार में।
कद्र थी माँ बाप की, समाज का भी भान था,
अभिव्यक्ति की आज़ादी, बढ़ रहे दुराचार में।
संयुक्त जब परिवार था, समाज में सम्मान था,
जबसे तन्हां रहने लगे, खोने लगे अहंकार में।
कोई रोके न टोके, सुनता नहीं कोई किसी की,
कुछ कमी बेटों मे, कुछ बेटियों के व्यवहार में।
अ कीर्तिवर्धन
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