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शनिदेव भगवान की जय !

शनिदेव भगवान की जय !

बजरंग बली की जय ! !

जय जय जय प्रभु शनिदेवा ।
कृपा करो मैं करता रहूं सेवा ।।
अधर्म पाप से मुझे बचाओ ।
अपनी कृपा मुजफर बरसाओ ।।
संशय बाधा बहुत मोहे घेरे ।
शीघ्र मिटाओ प्रभु मन के फेरे ।।
अंतर्मन में प्रकाश तुम दिखाओ ।
कृपादृष्टि से अब ज्ञान बरसाओ ।।
बाधा व्याधा औ व्याधि मिटाओ ।
कृपा बरसाकर मुझे बचाओ ।।
नेक मार्ग प्रभु मुझे दिखाओ ।
मेरे मन से अंधकार मिटाओ ।।
माता मोह से करो अब वंचित ।
मन मस्तिष्क करो अब संचित ।।
पितु संग आ प्रकाश बरसाओ ।
मन मस्तिष्क मेरे ज्ञान बरसाओ।।
न्यायाधिपति तुम तो कहलाते ।
संकट से सबको तुम्हीं बचाते ।।
भोलेशंकर यह परमपद दीन्हा ।
उच्चासन दे गौरवान्वित कीन्हा ।।
तुम्हारी महिमा सदा मैं गाऊं ।
यश कीर्ति अमरफल सदा पाऊं।।
करो नाथ अब मेरो बचावा ।
दुर्जन परिजन करें छलावा ।।
तुम बिन नहीं कोई अब मेरो ।
बहुत कष्ट दीन्हा अब दिन फेरो।।
जय जय जय हे न्याय के राजा ।
जीवन मार्ग अब मोहि दिखा जा।।
मनोरथ पूरण करो अब स्वामी ।
हरहु कष्ट मम अब से अंतर्यामी ।।
अरुण दिव्यांश अब करे प्रणामा ।
संग में विराजें रामा घनश्यामा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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