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दादा जी का चश्मा

दादा जी का चश्मा

दादा हमारे सुन्दर सुन्दर ,
दादाजी का चश्मा सुन्दर ।
दादा संग दादी भी बैठकर ,
कहानी कहती़ं सुन्दर सुन्दर ।।
दादाजी की गोल गोल बातें ,
दादी जी से सुन्दर सी रातें ।
भूल जाते पापा और मम्मी ,
सुबह होतीं उनसे मुलाकातें ।।
मम्मी प्यारी दादी भी प्यारी ,
दादा होते आंखों से‌ मजबूर ।
शाम वक्त पढ़ाने जब बैठते ,
दादाजी चश्मा लगाते जरूर ।।
हिन्दी पढ़ाते अंग्रेजी पढ़ाते ,
गणित भी सीखाते भरपूर ।
दादाजी जब संस्कृत पढ़ाते ,
दादी संस्कृति उतारतीं उर‌ ।।
दादाजी और सुन्दर दिखते ,
आंखों पर जब चढ़ाते चश्मा ।
दादी भी तब ख़ुश हो जातीय ,
दादा को सुनाती़ं सुंदर नगमा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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