आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ, कहानी एक किसान की,
धूप- छाँव सह करता खेती, गेहूँ, मक्का धान की।
सुबह सवेरे जल्दी उठता, फिर अपने खेतों में जाता,
घूम घूम कर क्यारी क्यारी, फसलों से बातें करता।
लिये फावडा नित हाथ में, डौल- डौल पर डोल रहा,
एक क्यारी में नाका खोले, एक में पानी बंद करता।
बढ जाती जब घास खेत में, खुरपी लेकर मंढ जाता,
कभी खाद की लिये पोटली, भरी दोपहरी दिख जाता।
बारह महीने हर मौसम में, प्रकृति से उसकी यारी,
जेठ दोपहरी या पूस रात्री, सब उसको प्यारा लगता।
भरी दोपहरी फसल काटता, रातों को देता पानी,
कुदरत के हैं रंग अनेंको, उसको प्यारा धानी लगता।
बोकर बीज धरा में उसकी, प्रगति रोज निहारा करता,
बढती हुयी फसल देख, मेहनत पर हर्षाया करता।
जब भी संकट हुआ देश पर, हथियारो की बात करे,
दुश्मन को निपटाने हेतु, बन्दुकों की खेती करता।
उसका ही तो बेटा है, जो सीमा पर सजग प्रहरी है,
देकर जान राष्ट्र हित में, जो सीमाओं की रक्षा करता।
रात रात भर जागा करता, खेत सरहद पर बन प्रहरी,
जय जवान- जय किसान, शास्त्री जी के अभिमान की।
आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ, कहानी एक किसान की,
धूप छाँव सह खेती करता, धरती के भगवान की।
मुश्किल मे वह आज फँसा है, कोरोना की मार से,
गेहूँ की फसल काटता, जिससे भूख मिटे इन्सान की।
अ कीर्तिवर्धन
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