हनुमान या अंगद - लंका किसे भेजें?:-मनोज मिश्र
अयोध्या के राजकुमार और निवर्तमान तपस्वी राम चन्द्र जी अपने साथी मित्रों के साथ सेना लेकर ऋष्यमूक पर्वत पर निवास कर रहे थे। वे समुद्र तट के काफी पास तक आ गए थे। पहाड़ों के उस पार सामने 100 योजन का शोर मचाता समुद्र था। लंका नगरी, जहां माता सीता के होने की संभावना सबसे बलवती थी, सागर के उस पर थी। चारों ओर परकोटे से घिरे और प्रकृति के अनुपम सुरक्षा कवच, सागर, से निबद्ध यह अलौकिक नगरी राम चन्द्र जी या उनके साथियों ने कभी नहीं देखी थी। पर जटायु से प्राप्त सूचना के अनुसार माता सीता का वहां होना संभावित था। ऐसे में विमर्श होने लगा कि आखिर कौन लंका जाकर माता सीता की सुधि लाएगा। बल बुद्धि, युद्ध कौशल में सुग्रीव और अंगद समान थे, पर सुग्रीव वानरों के राजा थे और एक राजा का दूसरे राजा के यहां बिना आमंत्रण के जाना किसी भी तरह उचित न था। फिर कौन जाए यह यक्ष प्रश्न था। जामवंत अब वृद्ध हो गए थे अन्यथा उनसे उत्तम कोई न था। अंत मे निर्णय भी उन्हीं पर छोड़ा गया। उन्होंने अपने प्रथम चयन में अंगद का नाम लिया। अंगद को बुलाया गया तो उन्होंने यह चुनौती सहर्ष स्वीकार ली परंतु साथ ही अपनी बात भी रखी। लंका गमन उनके लिए बहुत सरल था क्योंकि वे बुद्धि और बल में बाली के पुत्र होने के कारण बाली के ही समान थे। फिर इतने से समुद्र को लांघना कोई बड़ी बात न थी पर शायद वो वापस न आ सकें, इसमे उन्हें संशय है -
अंगद कहइ जाऊं मैं पारा।
जियँ संशय कछु फिरती बारा।।
सभी वानर वीर असमंजस में थे। ये कैसी दुविधा है। तब जामवंत ने अंगद के बचपन की कथा सुनाई - बाली के पुत्र अंगद और रावण का पुत्र अक्षयकुमार गुरुभाई थे। दोनों ही विश्र्वासा मुनि के यहां शिक्षा ग्रहण करने जाते थे। अंगद बहुत बलशाली थे और बालपन के कारण शैतान भी थे। वे प्रायः अक्षय कुमार को थप्पड़ मार देते थे। इस थप्पड़ से अक्षय कुमार मूर्छित हो जाता था। पिटने के बाद वह रोते रोते गुरुदेव को अंगद की शिकायत करता था। गुरुदेव भी इस रोज रोज की शिकायत से खिन्न रहते थे। एक दिन गुरुदेव ने क्रोधित होकर अंगद को श्राप दे दिया कि अब तुमने जिस क्षण अक्षय कुमार पर हाथ उठाया तुम उसी क्षण मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। अंगद ने इसी संशय की बात की थी कि कहीं उनका सामना अक्षय कुमार से हो गया श्राप के प्रभाव से वे उससे लड़ नहीं पाएंगे या अगर लड़ गए तो जीवित न रह पाएंगे। दोनों ही स्थितियों में यह महाराज सुग्रीव और उनके मित्र राम चन्द्र जी के लिए हितकारी न होगा। जामवंत जी ने तब उन समान ही बलशाली और बुद्धिमान हनुमान जी का चयन किया और उनको उनके बल की याद कराई। हनुमान अपने बल को याद कर उन्मत्त होगये और पूछने लगे कि क्या मैं रावण को मार कर, पूरी लंका ही उखाड़ कर ले आऊं।
सहित सहाय रावनहि मारी।
आनेहुँ इन्हां त्रिकुट उपारि।।
तब मुस्कुराते हुए जामवंत जी ने उन्हें सिर्फ सीता माता का पता लगाकर आने को कहा।
जब रावण को उसके सैनिकों ने बताया कि बड़ा भारी वानर आया है जिसने अशोक वाटिका तहस नहस कर डाली है तो रावण के ध्यान में आया कि इतना बलशाली जो सौ योजन का समुद्र लांघकर आ सके वो सिर्फ बाली और अंगद ही हैं। बाली मारा जा चुका है यह बात उंसके गुप्तचर उसे बताया चुके थे अतः यह वानर जरूर अंगद ही होगा। उसने अंगद के मुकाबले के लिए अक्षय कुमार को भेजा क्योंकि श्राप की बात उसके संज्ञान में थी। अंगद ज्यों ही अक्षय कुमार पर प्रहार करेगा तत्क्षण मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। इससे शत्रु की सेना का मनोबल भी टूटेगा और रावण की शक्ति की चर्चा भी वानर सेना में होने लगेगी। अतः उसने अक्षय कुमार को आदेश दिया कि वह उस वानर का वध कर दे।
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।
चला संग लै सुभट अपारा।।
परंतु जब हनुमान जी ने अक्षय कुमार का वध कर दिया और जान बचा कर भागे राक्षसों ने यह सूचना उसे दी तो पुत्र वध से ज्यादा विस्मय उसे ऐसे योद्धा का परिचय न होने से हुआ अतः उसने मेघनाथ को युद्ध के लिए भेजा साथ ही निर्देश भी दिया कि इस वानर को मारना नहीं अपितु बंदी बनाकर लाना। वो देखना चाहता था कि अंगद और बाली के अतिरिक्त ऐसा कौन सा वानर है जो इतना बलशाली है।
मारसि जनि सुत बाँधेसु ताहि।
देखिय कपि कहाँ कर आही।।अब प्रश्न यह भी है कि हनुमानजी चाहते तो अक्षय कुमार को मार कर भगा सकते थे परंतु जब तक अक्षयकुमार जिंदा है तब तक किष्किंधा का राजकुमार सुरक्षित न था और न ही लंका में उसका प्रवेश राजनीतिक, सामरिक या न्यायिक दृष्टि से उचित था। अतः हनुमान जी ने उसका वध कर दिया। अंगद के युवराज होने के नाते किसी भी बातचीत में श्रेष्ठ दूत हो सकते थे जो वे बाद में बने भी थे। हनुमान तो ऐसे भी ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं अतः नीतिपूर्वक आने वाले शत्रुओं को संभावित युद्ध के पूर्व ही राह से हटाना राजनीतिक चतुराई ही थी।-
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