पानी बिकता और हवा भी बिकते देखी,
अजब दौर की गजब कहानी हमने देखी।कहते बाबा प्याऊ लगाना, मानवता हित,
ताल तलैया उपवन भी हो, मानवता हित।
कोई नहीं पीता है पानी अब प्याऊ पर जा,
सील बन्द बोतल ने उस पर कब्जा कर रखा।
जाने कितने वृक्ष लगाये, सबने सड़क किनारे,
काट दिए सब वृक्ष, बचें धूप से किसके सहारे।
नहीं मिल रही प्राण वायु, अब जंगल में भी,
जीने हेतु बांध रहे कमर पर, आक्सीजन थैली।
अब भी थोड़ा वक्त बचा है, जाग सको तो जागो,
निःशुल्क पिलाओ पानी, सड़कों पर वृक्ष लगाओ।
अपने बच्चे जीयें चैन से, कुछ ऐसा सोचो,
निज स्वार्थ ही सही, उपवन में पौधों को रोंपो।
अ कीर्ति वर्द्धन
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