मां बता पता तू कहां है ,
तुम पे टिका धरा आसमां है ।अब तक जो आए धरा पर ,
आज जाने कहां वह रवां है ।।
तुम तो हो अदृश्य कहीं पर ,
तेरी धरा पे बसा यह जहां है ।
सुनते हैं तुम हो सर्वत्र किंतु ,
नहीं कहीं भी तू यहां वहां है ।।
ढूंढ़ता फिर रहा कब से तुम्हें ,
इस कोने उस कोने जहां तहां है ।
ढह गया मेरे मन का मनका ,
मान गया मां तू तो महां है ।।
जहां तुम हो छुपकर रहती ,
वहां मैंने तुम्हें ढूंढ़ा ही कहां है ।
हृदय में तू वास तो है करती ,
किंतु मन से तो मेरे तू रवां है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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