कर्म जीवन की भूमिका
कर्म जीवन की भूमिका ,निष्कर्ष है जिसका फल ।
तममय ज्योर्तिमय होता ,
आनेवाला ही वह कल ।।
जीवन के पल बहुमूल्य है ,
पल पल पर आश्रित कल ।
पल को जो समझा न पाया ,
पल भी बह जाता है नर ।।
श्रम करे शीश ऊंच होत है ,
श्रम बिन अधूरा होता कर्म ।
फल निकलता जब है बुरा ,
तब आती बहुत ही है शर्म ।।
कर्मवान को ऊंच पहुंचाता ,
सुन्दर फल होता है इनाम ।
कर्महीन का कल ग़र्क होता ,
जब मिल जाता है परिणाम ।।
काका मौसा फूफा व पिता ,
क्यों न हों वे चाचा भतीजा ।
जैसा कर्म फल वैसा मिलता ,
बुरे काम का है बुरा नतीजा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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