गंगा दशहराः दस पापों से मुक्ति
मार्कण्डेय शारदेय
(ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र विशेषज्ञ)----------------
गंगा अपने आप में परम पवित्र नाम है।माँ की ममता है।हजारों वर्षों से यह नदी अपनी पावन कीर्ति से भारत के एक छोर को दूसरे छोर से जोड़ती आई है।इसके अमृत तुल्य जल की एक बूँद भी पाकर दूर-दराज के लोग अपने को बड़भागी मानते आए हैं।‘गंगा’ इस शब्द का उच्चारण भी बड़े-से-बड़े पापों से मुक्त कर देनेवाला है।फिर; दर्शन, स्नान आदि के बारे में क्या कहना!
गंगा अति दुर्लभ मुक्ति का प्रतीक है।इसका अवतार ही इसीलिए हुआ।सगर-पुत्रों के उद्धार से सिलसिला चला और आज भी अनवरत चालू है।आम लोग क्या; वैज्ञानिक भी इसकी दिव्यता के कायल हैं। ओह! हमारी देव-संस्कृति को संरक्षित करनेवाली यह देवनदी स्वयं असुरक्षित होती जा रही है।फिर भी इसकी महिमा और इसपर लोक आस्था की कमी नहीं आई है।आज भी इसके जल से दवताओं का पूजन, रुद्राभिषेक, पितरों का तर्पण, श्राद्ध, घर की शुद्धि की हमारी परिपाटी है।आज भी मरणासन्न को गंगाजल पिलाया जाता है और आज भी विजया दशमी (आश्विन शुक्ल दशमी) से गंगा दशहरा (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) तक का गंगाजल बोतल आदि में भर कर पूजाघर में रखते हैं। आज भी गंगातटों पर, मन्दिरों में या पूजागृहों में गाते-पढ़ते सुना जाता है—
‘पापापहारि दुरितारि तरंगधारि,
शैलप्रचारि गिरिराज-गुहा-विदारि।
झंकार-कारि हरिपाद-रजो·पहारि,
गांगं पुनातु सततं शुभकारि वारि।।
अर्थात्; पापों का हरण करनेवाला, दुष्कर्मों का शत्रु, तरंगों को धारण करनेवाला, पर्वत पर से चलनेवाला, हिमालय की कन्दराओं को तहस-नहस करनेवाला, मधुर स्वर से युक्त, भगवान विष्णु की चरण-धूलि धोनेवाला, मंगलकारी गंगाजल मुझे सदा पवित्र करे।
कब तो कहना कठिन है, पर कभी जेठ सुदी दशमी को ही भगीरथ के तप से हिमालय के घर प्रकटी गंगा धरातल पर उतरी।फिर; फिर उतरकर सागर-गामिनी हुई।
जैसे हमारे यहाँ जन्मकुण्डली का आज अधिक चलन है, वैसे ही पुराणों ने ज्योतिष सम्बन्धी दस योगों की चर्चा की है।स्कन्द पुराण के अनुसार जब गंगा-अवतरण हुआ था, तब ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, हस्त नक्षत्र, बुधवार, व्यतीपात योग, गर करण, आनन्द योग, कन्या राशि का चन्द्र एवं वृष राशि का सूर्य था।इन्हें पंचांगगत विशेष पुण्यकाल मानकर पापनाशक गंगास्नान बताया गया है-
‘ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशम्यां बुध-हस्तयोः।
व्यतीपाते गरानन्दे कन्या-चन्द्रे वृषे रवौ।
दशयोगे नरः स्नात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते’।।
वराह पुराण ने केवल पूर्ववत् मास, पक्ष, नक्षत्र को मान्यता दी है।पर; वार में बुध की जगह मंगल कहा है।विद्वानों ने इस विभेद को कल्पभेद कहकर नजरअंदाज कर दिया है।यों भी दिनों का जन्म बहुत बाद में हुआ है।हाँ; शास्त्रकारों का मन्तव्य है कि हमेशा गंगा दशहरा को ये दसों योग सम्भव नहीं हैं तो भी जिस वर्ष अधिक-से-अधिक योग हों, उस वर्ष स्नानादि का अधिक महत्त्व होता है।क्योंकि; योगों की अधिकता से फल की अधिकता मानी जाती है।
अब दशविध पापों की बात करें; जिनका गंगा दशहरा को स्नान, पूजन करने से नाश होता है। इन पापों की तीन श्रेणियाँ हैः कायिक, वाचिक और मानसिक।यहाँ कायिक के अन्तर्गत किसी की इजाजत के बिना कोई चीज ले लेना, किसी तरह की हिंसा तथा पराई स्त्री का सेवन हैं।वाचिक पापों में कठोर वाणी का प्रयोग, झूठ, चुगलखोरी एवं व्यर्थ बकवाद हैं।मानसिक पापों में दूसरे के धन का लोभ, किसी की बुराई सोचना तथा देहाभिमान हैं।मनु भी इन दोषों को त्यागने का निर्देश करते हैं।क्योंकि; इन शारीरिक पापों के काऱण व्यक्ति अगले जन्म में स्थावर (पेड़-पौधे आदि), वाचिक पापों से तिर्यक (पशु-पक्षी आदि) एवं मानस पापों से निम्न स्तरीय मानव बनता है।
स्पष्ट है कि मानवीय उत्थान के जो सद्गुण बताए गए हैं, उन्हें अपने में सँजोना और दुर्गुण कभी आने न पाएँ इसके लिए शास्त्राभ्यास, शास्त्रानुसरण, देवपूजन, तीर्थ-सेवन एवं सत्संग आवश्यक है। हर समय, हर स्थान और हर व्यक्ति का एक खास महत्त्व होता है।गंगा दशहरा का यह मुख्य महत्त्व है कि अन्य दिनों में अन्य पर्वों पर गंगासेवन का जो पुण्य है वह तो है ही इस दिन पापनाश ही विशेष है। पापनाश के बाद पुण्यलाभ होगा ही, इसलिए शास्त्र-कथन है कि इस दिन इनाम के रूप में माँ गंगा सौगुना यज्ञफल भी देती हैं।
मानें या न मानें, यदि इस दिन का इतना माहात्म्य है तो पूजन करें या न करें, दान करें या न करें, पर एक बार डुबकी लगा लेने में क्या हर्ज है! अगर डुबकी दूर की हो तो किसी जलाशय में, वह भी न हो सके तो कहीं किसी तरह नहाते समय ही सही गंगाजी का स्मरण करने में न तो द्रव्य लगेगा और न थकान ही होगी! विश्वास फलवान होगा ही।अच्छा काम मन न लगने पर भी कर ही लेना चाहिए।*(तत्त्वचिन्तन)
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