अगर एक रंग ही हो जिन्दगी, नीरस सी हो जाती है ज़िन्दगी।
काले के सामने सफेद रंग, सफेद का सार बताती है ज़िन्दगी।कभी कसैली तो हो कभी खारी, कभी मीठी चरपरी स्वाद आता,
खट्टे का स्वाद चख चख कर ही, चटपटी सी हो पाती है ज़िन्दगी।
देखा है प्रकृति को रंग बिरंगी सी, एक रंग होती तो मन भर जाता,
सावन का अन्धा हरा हरा बोलता, रेगिस्तान सी हो जाती है जिन्दगी।
चुनौतियां सामने तो जोश आता, जीने का मकसद जिन्दगी को भाता,
चौराहे पर खडे हो रास्ते को चुनना, मन्जिल तब पहुंचाती है ज़िन्दगी।
कसमें वादे या शिकवे शिकायत, अपनों से होते हैं, अन्जानो से नहीं,
अपनों से प्यार- अपनों की बेरूखी, सबकी पहचान कराती है ज़िन्दगी।
सादगी का मतलब तन्हां नहीं होता, मजबूरी में भूखा व्रत नहीं होता।
खाने को व्यंजन चुनने की आज़ादी, व्रत का महत्व समझाती है ज़िन्दगी।
डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन
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