भारत के बँटवारे का था, हिन्दू मुस्लिम ही आधार,
लेकिन सत्ता के लालच मे, तब देश के कुछ ग़द्दार।कुछ ने लगा लिया मुखौटा, धर्मनिरपेक्ष भाईचारे का,
कुछ ने खेल अनोखा खेला, खुद ही बन बैठे सरकार।
जिसको अपना भाई समझा, वह हमको चारा बता रहे,
पाकिस्तान में मन्दिर तोडे, मानवता को धता बता रहे।
हिन्द मिला हिन्दुओं को, मुस्लिमों का अधिकार न था,
सत्ता के भूखे कुत्तो संग, भारत पर अधिकार जता रहे।
देवबन्द में मदनी कहता, बस शरीयत को मानेंगे,
सीएए या एनआरसी, भारत को भारत न मानेंगे।
समान नागरिक संहिता, या जनसंख्या की बातें,
देश हमारे पुरखों का है, हम संविधान नहीं मानेंगे।
मुफ़्त माल में सबसे आगे, सबसे ज़्यादा आतंकी,
लूट खसोट चोरी डाका, सब खेल खेलते प्रपंची।
नहीं मोहब्बत ज़रा हिन्द से, सदा पाक से हमदर्दी,
अल्पसंख्यक कार्ड खेलते, हर दम करते नौटंकी।
अ कीर्ति वर्द्धन
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